मराठीतील सर्व म्हणी व अर्थ
Marathi Mhani with Meaning List
मराठी
व्याकरण मध्ये नेहमी वापरल्या जाणाऱ्या ५०५ हुन अधिक मराठी म्हणी संग्रह , मराठी म्हणी व त्यांचे अर्थ आपणास
येथे मिळतील .
मराठी
जुन्या म्हणी, आधुनिक
म्हणी, गावरान, मराठी भाषेतील असभ्य
म्हणी आणि वाक्प्रचार, मराठी विनोदी म्हणी, ऐतिहासिक म्हणी, मराठी म्हणींचा संग्रह व त्याचे
अर्थ, वाक्यात उपयोग स्पष्टीकरणासह खाली दिलेल्या आहेत.
म्हणी
म्हणजे पारंपारिक वाक्य कि जे अनुभवावर आधारित समजलेल्या सत्याची अभिव्यक्ती करते.
ह्या
मराठी म्हणी स्पर्धा परीक्षा ची तयारी करणाऱ्यासाठी अत्यंत उपयुक्त आहेत. नेहमी
अभ्यासक्रमात ”मराठी
व्याकरण” या विषयामध्ये म्हणी यावर प्रश्न विचारले जातात.
नक्की
वाचा –
म्हणी वर विचारल्या जाणाऱ्या प्रश्नांचे उदाहरण:
- मराठी म्हणी ओळखा.
- म्हण पूर्ण करा.
- म्हणीचा अर्थ सांगा.
- वाक्यात उपयोग करा.
सहसा
विचारल्या जाणाऱ्या ५०० मराठी म्हणीचा संग्रह दिला आहे अर्थांसोबत
मराठीतील सर्व म्हणी Marathi Mhani with Meaning List:
अनु.क्र |
म्हणी |
अर्थ |
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१ |
अंगाचा तीळ पापड होणे |
खूप संतापणे |
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२ |
अंगात नाही बळ आणि चिमटा घेउन पळ |
दुर्बळ मनुष्य बलवान व्यक्ती वर सरळ
हल्ला न करता छोटी खोडी काढून पसार होतो. |
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३ |
अंथरूण पाहून पाय पसरावे |
आपली आवक जेव्हढी असेल तेवढेच पैसे
खर्च करावे |
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४ |
अक्कल खाती जमा |
नुकसान होणे |
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५ |
अक्कल नाही काडीची म्हणे बाबा माझे
लग्नं करा |
क्षमता नसताना एखाद्या गोष्टीचा
हट्ट करणे. |
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६ |
अचाट खाणे मसणात जाणे |
अती प्रमाणात कोणतीही गोष्ट घातक
ठरू शकते |
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७ |
अठरा विश्वे दारिद्र असणे |
अति दुर्बळ असणे |
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८ |
अडला नारायण गाढवाचे पाय धरी |
बलाढ्य व्यक्ती गरज असताना
कोणत्याही व्यक्तीकडे मदतीची याचना करू शकतो |
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९ |
अडली गाय अन फटके खाय |
अडचणीत सापडलेल्या व्यक्तीस जास्त
त्रास देणे |
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१० |
अडाण्याचा गेला गाड़ा, वाटेवरची शेते काढा |
मूर्ख माणूस कोणत्याही प्रकारे
विचित्र वर्तन करू शकतो |
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११ |
अति राग भीक माग |
क्रोधामुळे कोणतीही गोष्ट साध्य
करता येत नाही |
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१२ |
अतिपरीचयेत अवज्ञा |
अतिघनीष्ट सबंध हानिकारक ठरू शकतो |
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१३ |
अनुभवल्याशिवाय कळत नाही, चावल्याशिवाय गिळत नाही |
एखाद्या गोष्टीत सहभाग घेतल्याशिवाय
ती गोष्ट साध्य होत नाही |
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१४ |
अन्नछ्त्रात मिरपूड मागू नये |
गरजवंत व्यक्तीला पर्याय नसतो |
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१५ |
अपयश हे मरणाहून वोखटे |
अपयश मरणापेक्षा भयंकर आहे व
लाजीरवाणे आहे |
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१६ |
अप्पा मारी गप्पा |
काही रिकामटेकडे उगाच चर्चेचे
पाल्हाळ लावतात |
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१७ |
असतील शिते तर नाचतील भुते |
संपत्ती असलेल्या व्यक्तीकडे सर्वजण
येतात |
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१८ |
अंगाची लाही लाही होणे |
खूप संतापणे |
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१९ |
अंगाची तलखी होणे |
खूप संतापणे |
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२० |
अंतकाळापेक्षा मध्यांन्नकाळ कठीण |
मरणापेक्षा भुकेच्या यातना कठीण असतात |
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२१ |
अंधारात केले तरी उजेडात आले |
गुप्तपणे केलेली गोष्ट कधीही
सर्वाना कळू शकते |
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२२ |
अक्कल नाही काडीची नाव
सहस्त्रबुद्धे |
नावाप्रमाणे लोक नसतात |
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२३ |
अगं अगं म्हशी, मला कुठं नेशी? |
एकाच्या चुकीसाठी इतर लोकाना दोष
लावणे |
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२४ |
अठरा विश्व दारिद्र्य त्याला छत्तीस
कोटी उपाय |
जीवनात यशस्वी होण्यासाठी अनेक उपाय
आहेत, फक्त ते आचरणात आणले पाहिजेत |
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२५ |
अडाण्याची गोळी भल्यास गिळी |
अशिक्षीत माणूस कोणालाही अडचणीत आणू
शकतो |
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२६ |
अडला हरी गाढवाचे पाय धरी |
अडचणीच्या वेळी मूर्खाचीही मनधरणी
करावी लागते |
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२७ |
अडली गाय खाते काय |
गरजू माणूस कोणत्याही अटी स्वीकारून
काम करतो |
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२८ |
अति तेथे माती |
कोणत्याही गोष्टीचा अतिरेक झाल्यास
काम बिघडते |
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२९ |
अति शहाणा त्याचा बैल रिकामा |
शिष्ट माणसाशी व्यवहार करताना लोक
जपून वागतात त्यामुळे त्यांना काम करणे जड जाते |
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३० |
अती झालं अऩ हसू आलं |
एखाद्या गोष्टीचा जास्त उहापोह केला
तर ती गोष्ट हास्यास्पद ठरते |
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३१ |
अनोळख्याला भाकरी द्यावी पण ओसरी
देऊ नये |
अपरिचित माणसाशी अधिक सलगी करू नये |
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३२ |
अपयश ही यशाची पहिली पायरी आहे |
कोणत्याही यश मिळवताना सुरवातीला
अपयश येऊ शकते |
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३३ |
अपुऱ्या घड्याला डब |
डब फार कमी बुद्धिवान माणूस आपले
ज्ञान उगाच सर्वदूर सांगत सुटतो |
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३४ |
असंगाशी संग प्राणाशी गाठ |
अयोग्य माणसाची सांगत धरल्यास
प्राणही जाऊ शकतो |
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३५ |
असेल तेव्हा दिवाळी नाहीतर शिमगा |
भरपूर द्रव्य असल्यावर चैन करायची
नाहीतर गप्प बसायचे |
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३६ |
आंधळी पाण्याला गेली अन घागर फोडून
घरी आली |
अक्षम व्यक्तीस काम दिल्यास ते तडीस
जाणे कठीण असते |
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३७ |
आंधळे दळते अन कुत्रे पीठ खाते |
एकाने कष्ट करायचे अन दुसऱ्याने लाभ
घ्यायचा |
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३८ |
आंधळ्याची बहिऱ्याशी गाठ |
एकमेकांना मदत न करणाऱ्या व्यक्ती
जवळ येणे |
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३९ |
आंधळा मागतो एक डोळा देव देतो दोन |
अपेक्षेपेक्षा जास्त लाभ होणे |
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४० |
आंधळीपेक्षा तिरळी बरी |
एखादी बाब अगदीच वाईट
स्वीकारण्यापेक्षा थोडी दोष असलेली गोष्ट स्वीकार करणे कधीही
चांगले |
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४१ |
आंधळ्या प्रजेत हेकणां राजा |
असहाय्य गरीब लोकांमध्ये एखादा
चुकीचे निर्णय घेऊन राज्य करतो |
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४२ |
आंधळा मागतो एक डोळा देव देतो दोन |
अपेक्षेपेक्षा जास्त लाभ होणे |
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४३ |
आंधळीपेक्षा तिरळी बरी |
एखादी बाब अगदीच वाईट
स्वीकारण्यापेक्षा थोडी दोष असलेली गोष्ट स्वीकार करणे कधीही
चांगले |
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४४ |
आंधळ्या प्रजेत हेकणां राजा |
असहाय्य गरीब लोकांमध्ये एखादा
चुकीचे निर्णय घेऊन राज्य करतो |
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४५ |
असेल तेव्हा दिवाळी नाहीतर शिमगा |
भरपूर द्रव्य असल्यावर चैन करायची
नाहीतर गप्प बसायचे |
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४६ |
आंधळी पाण्याला गेली अन घागर फोडून
घरी आली |
अक्षम व्यक्तीस काम दिल्यास ते तडीस
जाणे कठीण असते |
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४७ |
आंधळे दळते अन कुत्रे पीठ खाते |
एकाने कष्ट करायचे अन दुसऱ्याने लाभ
घ्यायचा |
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४८ |
आंधळ्याची बहिऱ्याशी गाठ |
एकमेकांना मदत न करणाऱ्या व्यक्ती
जवळ येणे |
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४९ |
आई जेवू घालीना बाप भिक मागू देईना |
दोन्हिकडून संकटात सापडणे |
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५० |
आईचा काळ नि बायकोशी मवाळ |
आईशी वाईट वागून बायकोला महत्त्व
देणे |
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५१ |
आईजीच्या जिवावर बाईजी उदार |
दुसऱ्याचा पैसा दान करून स्वतः चा
बडेजाव दाखविणे |
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५२ |
आकारे रंगती चेष्टा |
माणसाच्या बाह्य स्वरूपावरून त्याचा
कार्याचा अंदाज करता येत नाही |
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५३ |
आखुड शिंगी आणि बहुदुधी |
सर्व आपल्या मनासारखे व्हावे असे
वाटणे |
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५४ |
आगीतून निघून फुफाट्यात पडणे |
एका संकटातून निघून दुसर्या संकटात
सापडणे |
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५५ |
आचार भ्रष्ट नि सदा कष्ट |
अनाचाराने वागणारा माणूस सदा दु:खी
असतो |
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५६ |
आजा मेला नि नातू झाला |
एकीकडे फायदा तर दुसरीकडे तोटा
होणार |
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५७ |
आठ हात काकडी नउ हात बी |
एखाद्या गोष्टीची फारच स्तुती करून
सादर करणे |
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५८ |
आडात नाही तर पोहऱ्यात कोठून येणार |
एखादी गोष्ट अस्तित्वात नसतांना
त्याची अपेक्षा करणे व्यर्थ आहे |
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५९ |
आधणातले रडतात अन सुपातले हसतात्त |
दुसऱ्यांना हसताना विचार करणे
क्रमप्राप्त आहे, काही दिवसांनी तशी वेळ आपल्यावरही येऊ
शकते |
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६० |
आधी जाते बुद्धी मग जाते लक्ष्मी |
आधी वर्तन बिघडते मग मनुष्य कंगाल
होतो |
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६१ |
आधीच आम्हाला हौस, त्यात पडला पाऊस |
एखाद्या अचानक ठरलेल्या गोष्टीत
बाधा उत्पन्न होणे |
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६२ |
आधीच मर्कट तशातच मद्य प्याला |
आधीच विचित्र बुद्धीचा,अन अवास्तव प्रोत्साहन मिळाल्यामुळे त्याच्या
चेष्टाना उत येतो |
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६३ |
आपण शेण खायचं अन दुसऱ्याच तोंड
हुंगायच |
स्वतः वाईट कर्म करायचे अन
दुसऱ्यावर संशय घ्यायचा |
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६४ |
आपण हसे लोकाला अन घाण आपल्या
नाकाला |
ज्या दोषाबद्दल लोकास हसायचे, तोच दोष आपल्यात असताना दुर्लक्ष करणे |
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६५ |
आपला हात जगन्नाथ |
आपली उन्नती आपल्यावरच अवलंबून असते, आपल्या हातात अधिकार आला तर त्याचा दुरुपयोग
करून जिन्नस लाटणे |
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६६ |
आपले नाक कापून दुसऱ्याला अपशकून |
आपले नुकसान झाले तर दुसऱ्याचे
पणनुकसान होवो ही मनीषा मनात बाळगणे |
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६७ |
आपलेच दात अन आपलेच ओठ |
आपल्या माणसांनी आपल्याच माणसाना
त्रास देणे |
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६८ |
आपल्या गल्लितच कुत्रे शिरजोर |
आपल्या भागात आपला वरचष्मा ठेवणे |
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६९ |
आभाळ फाटल्यावर त्याला ठिगळ कसे
लावायचे |
मोठे संकट आले की बचाव करणे अवघड
असते |
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७० |
आयत्या पिठावर रेखोट्या मारणे |
कोणतेही काम न करता दुसर्याच्या
जिवावरउपभोग घेणे |
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७१ |
आरोग्य हेच ऐश्वर्य |
चांगले आरोग्य ही यशाची गुरुकिल्ली
आहे |
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७२ |
आली चाळीशी, करा एकादशी |
परिस्थितीनुसार आपल्या सवयी बदलवणे |
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७३ |
आले अंगावर घेतले शिंगावर |
संकटाचा सामना धैर्याने करावा |
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७४ |
आशेची माय निराशा |
निराशा येईल म्हणून आशा कधीही सोडू
नये |
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७५ |
आस्मान दावणे |
पराजय करणे |
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७६ |
आई जेवू घालीना बाप भीक मागू देईना |
दोन्ही बाजूंनी अडचण |
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७७ |
आईची माया न पोर जाई वाया |
अति लाडाने मुल बिघडते |
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७८ |
आकांक्षापुढती गगन ठेंगणे |
आशावाद ठेवल्यास कोणतेही लक्ष्य
साध्य होते |
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७९ |
आखाड्याच्या मैदानात पहिलवानाची
किंमत |
माणसाला योग्य ठिकाणीच किंमत मिळते |
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८० |
आग सोमेश्वरी नि बंब रामेश्वरी |
गरजू माणसाला मदत न करता, गरज नसलेल्या माणसाला मदत करणे |
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८१ |
आचार तेथे विचार |
चांगली संस्कृती चांगल्या विचाराना
जन्म देते |
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८२ |
आज अंबरी उद्या झोळी धरी |
कधी थाटामाटात तर कधी दरिद्री राहणे |
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८३ |
आठ पुरभय्ये अन नऊ चौबे |
जमत नसल्यास सगळ्यांची चूल वेगवेगळी
असते |
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८४ |
आठ हात लाकुड, नऊ हात धलपी |
एखाद्या गोष्टीची फारच स्तुती करून
सादर करणे |
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८५ |
आत्याबाईला मिशा असत्या तर तिला
काकाच म्हटले असते |
अशक्य गोष्टींची चर्चा करण्यात काही
अर्थ नसतो |
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८६ |
आधी करावे मग सांगावे |
कार्य तडीस गेल्याशिवाय त्याबद्दल
उगाच बोलू नये |
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८७ |
आधी पोटोबा मग विठोबा |
अगोदर पोट भरावे मग देवास आळवावे |
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८८ |
आधीच उल्हास त्यात फाल्गुन मास |
आधीच हौशीने केलेलं काम अन त्याला
अनुकूल परिस्थिती निर्माण होणे |
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८९ |
आपण चिंतीतो एक पण देवाच्या मनात
भलतेच |
प्रत्येकच गोष्ट आपल्या मनासारखी
होत नाही |
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९० |
आपण सुखी तर जग सुखी |
आपण आनंदात असता सर्व जग सुखी वाटणे |
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९१ |
आपला तो बाब्या दुसऱ्याच ते कारटं |
स्वतःच्या चुकांकडे दुर्लक्ष करून
दुसऱ्याच्या चुकांविषयी बोलणे |
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९२ |
आपली पाठ आपणास दिसून येत नाही |
आपले दोष आपल्याला दिसत नाहीत |
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९३ |
आपले नाही धड अन शेजाऱ्याचा कढ |
आपली परिस्थिती चागली नसताना
दुसऱ्याच्या परिस्थिती विषयी कळकळ दाखविणे |
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९४ |
आपल्या अळवाची खाज आपणास ठावी |
आपले दोष आपल्यालाच माहित असते |
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९५ |
आपल्याच पोळीवर तूप ओढून घ्यायचे |
इतरांचा विचार न करता स्वार्थ साधणे |
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९६ |
आमचे गहू आम्हालाच देऊ |
आपल्याच वस्तूचा चतुराईने दुसऱ्याना
लाभ न मिळू देता स्वतःच लाभ घेणे |
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९७ |
आयत्या बिळावर नागोबा |
कोणतेही काम न करता दुसर्याच्या
जिवावर उपभोग घेणे |
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९८ |
आलिया भोगासी असावे सादर |
आलेल्या संकटास कुरकुर न करता तोंड
देणे भाग असते |
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९९ |
आलीया भोगासी असावे सादर |
अल्प आमिष दाखवून मोठे काम करून
घेणे. |
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१०० |
आवळा देऊन कोहळा काढणे |
अल्प आमिष दाखवून मोठे काम करून
घेणे |
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१०१ |
आसू ना मासू , कुत्र्याची सासू |
जिव्हाळा नसताना वरवर कळवळा दाखविणे |
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१०२ |
इकडे आड तिकडे विहीर |
दोन्ही बाजूनी संकटात सापडणे |
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१०३ |
इच्छिलेले घडते तर भिक्षुकही राजे
होते |
सर्व इच्छेप्रमाणे झाले असते तर
सर्व लोकं धनवान झाले असते |
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१०४ |
इज्जतीचा फालुदा होणे |
अपमान होणे |
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१०५ |
इकडे आड तिकडे विहीर |
कोंडी होणे |
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१०६ |
इच्छा तसे फळ |
मनात चांगले विचार ठेऊन केलेले
कार्य यशस्वी होतेच |
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१०७ |
इजा बिजा तीजा |
एकसारख्या होणाऱ्या घटना टाळता येत
नाही |
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१०८ |
उंटावरचा शहाणा |
मूर्ख सल्ला देणारा |
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१०९ |
उंटावरून शेळ्या हाकणे |
आळस,
हलगर्जीपणा करणे |
|
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११० |
उंदराला मांजर साक्ष |
वाईट माणसाने दुसर्या वाईट
माणसाविषयी चांगले सांगणे |
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१११ |
उकराल माती तर पिकतील मोती |
शेतीची चांगली मशागत तर पिके चांगली
येतात |
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११२ |
उखळात डोके घातल्यावर मुसळाची भीती
कशाला |
एखादे मोठे , कठीण काम हातात घेतल्यानंतर श्रमांचा विचार
करायचा नसतो |
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११३ |
उघड्याकडे नागडा गेला अनं रात्रभर
हिवाने मेला |
एक लहान पत असलेली व्यक्ती दुसऱ्या
गरीब व्यक्तीची बरोबरी करू शकत नाही. |
|
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११४ |
उचलली जीभ लावली टाळुला |
कोणताही विचार न करता बोलणे |
|
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११५ |
उठता लाथ बसता बुक्की |
कायम धाकात ठेवणे |
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११६ |
उडदामाजी काळे |
बेरे चांगल्या गोष्टी सोबत वाईट
गोष्ट असु शकते |
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११७ |
उतावळा नवरा गुडघ्याला बाशिंग |
एखाद्या गोष्टीसाठी खूप घाई करणे |
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११८ |
उथळ पाण्याला खळखळाट फार |
अपरिपक्व ज्ञान असणारा व्यक्ती उगाच
ज्ञानप्रदर्शन करतो |
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११९ |
उधार तेल खावत निघाले |
उधारीच्या मालत काही न काही दोष
असतो |
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१२० |
उन पाण्याने घर जळत नसते |
एखाद्यावर खोटे आरोप केले तरी
त्याची बेअब्रू होत नाही |
|
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१२१ |
उंच वाढला एरंड तरी होईना इक्षुदंड |
छोट्या गोष्टी मोठ्यांशी बरोबरी करू
शकत नाही. |
|
|
१२२ |
उंटावरचा शहाणा |
मूर्ख सल्ला देणारा |
|
|
१२३ |
उंटावरून शेळ्या हाकणे |
कोणत्याही कामात सहभाग न घेता उगाच
फुकटाचे मार्गदर्शन करणे |
|
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१२४ |
उंदीर गेला लुटी अन आणल्या दोन मुठी |
मनुष्य आपल्या कुवतीनुसार काम करतो |
|
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१२५ |
उकिरड्याची दैना बारा वर्षांनी
देखील फिटते |
गरीब व्यक्तीचे दिवस कधीही पालटू
शकतात |
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१२६ |
उघड्या डोळ्यांनी प्राण जात नाही |
धडधडीत नुकसान होत असताना न
प्रतिकार करता माणसाला स्वस्थ बसवत नाही |
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१२७ |
उचल पत्रावळी म्हणे जेवणारे किती |
मुद्द्याचे काम सोडून भलतीच चौकशी
करणे |
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१२८ |
उचलली जीभ लावली टाळ्याला |
बेताल बोलणे |
|
|
१२९ |
उडत्या पक्षाची पिसे मोजणे |
सहज चालता बोलता एखाद्या गोष्टीची
पारख करणे |
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१३० |
उडाला तर कावळा बुडाला तर बेडूक |
एखाद्या गोष्टीची पारख लगेचच होत
नाही त्यासाठी थोडा वेळ जाऊ द्यावा लागतो |
|
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१३१ |
उत्तम शेती मध्यम व्यापार नि कनिष्ठ
नोकरी |
नोकरी पेक्षा व्यापार व
व्यापारापेक्षा शेती उत्तम आहे |
|
|
१३२ |
उद्योगाचे घरी रिद्धी सिद्धी पाणी
भरी |
उद्योगी मनुष्य जीवनात यशस्वी होतो
व त्याची भरभराट होते |
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१३३ |
उधारीचे पाते अन सव्वा हात रिते |
उधारीने घेतलेला माल मग कमीच भरणार |
|
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१३४ |
उपट सूळ, घे खांद्यावर |
नसते लचांड पाठीमागे लावून घेणे |
|
|
१३५ |
उपट सूळ, घे खांद्यावर |
नसते लचांड पाठीमागे लावून घेणे |
|
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१३६ |
उभारले राजवाडे अन तेथे आले मनकवडे |
श्रीमंती आले की त्यामागे हाजी हाजी
करणारे येतातच |
|
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१३७ |
उस गोड लागला म्हणून मुळासकट खाऊ
नये |
एखाद्या चांगल्या गोष्टीचा ती नष्ट
होईल एव्हढा उपभोग घेऊ नये. |
|
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१३८ |
उसाबरोबर एरंडाला पाणी |
एखाद्या गोष्टीचा लाभ
अनपेक्षितरीत्या दुसऱ्या जवळच्या गोष्टीला होतो |
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१३९ |
उपसा पसारा मग देवाचा आसरा |
आधी कामा करावे मग देव देव करावे |
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१४० |
उभ्याने यावे अन ओणव्याने जावे |
कोणतेही काम स्वाभिमानाने करावे
त्याचे श्रेय नम्रपणाने घ्यावे |
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१४१ |
उसाच्या पोटी कापूस |
कर्तबगार व्यक्तीच्या वंशात आळशी
माणूस असणे |
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१४२ |
ऊस झाला डोंगा परी रस नाही डोंगा |
बाह्य स्वरूपावरून व्यक्तीच्या
स्वभावाची पारख करता येत नाही |
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१४३ |
ऋषीचे कुळ अन हरळीचे मुळ शोधू नये |
ऋषी अन महान अज्ञात गोष्टींचे मुळ
शोधायचा प्रयत्न करू नये |
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१४४ |
एक घाव दोन तुकडे |
एका फटक्यात निकाल लावणे |
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१४५ |
एक नूर आदमी दस नूर कपडा |
माणसाचा रुबाब नीटनेटक्या पोशाखाने
वाढतो |
|
|
१४६ |
एक पाय मोडल्याने गोम लंगडी होत
नाही |
एकसारखे अनेक स्त्रोत उपलब्ध असता
काम थांबत नाही किंवा श्रीमंत व्यक्तीचा काही पैसा खर्च झाला तरी त्याचा परिणाम
होत नाही |
|
|
१४७ |
एकदा की नाव कानफाट्या पडले की
पडलेच |
लोकात एकदा की नाचक्की झाली की लोकं
त्याच दृष्टीने पाहतात |
|
|
१४८ |
एकावे जनाचे करावे मनाचे |
सर्वांचे विचार एकूण आपला स्वतःचाच
निर्णय घ्यावा |
|
|
१४९ |
एका कानाने एकवे दुसऱ्या कानाने
सोडून द्यावे |
ऐकलेल्या सगळ्याच गोष्टींचा विचार
करणे व्यर्थ आहे |
|
|
१५० |
एका दगडात दोन पक्षी मारणे |
एकाच कार्यात दोन काम करणे |
|
|
१५१ |
एका माळेचे मनी |
सर्वजण येथून तेथून सारखे |
|
|
१५२ |
एका म्यानात दोन तलवारी राहत नाही |
लोकात एकदा की नाचक्की झाली की लोकं
त्याच दृष्टीने पाहतात. |
|
|
१५३ |
एका हाताने टाळी वाजत नाही |
भांडणात एकाचीच चुकी नसते, प्रत्येकाची थोडी चूक असतेच असते |
|
|
१५४ |
एकादशीच्या घरी शिवरात्र |
एका दरिद्री माणसाचा दुसऱ्या
दरिद्री माणसाचा उपयोग होत नाही. |
|
|
१५५ |
एकी हेच बळ |
एकत्र समुदाय कायम जिंकतो |
|
|
१५६ |
एरंडाचे गुर्हाळ |
एखादी गोष्ट लांबलचक व कंटाळवाणी
असणे |
|
|
१५७ |
एक कोल्हा सतरा ठिकाणी व्याला |
एकाच माणसाचा भरपूर लोकाना त्रास
होणे |
|
|
१५८ |
एक ना धड भारभार चिंध्या |
अनेक गोष्टी अपूर्ण करून , कोणत्याही गोष्टी पूर्ण न करणे |
|
|
१५९ |
एक पाय तळ्यात एक पाय मळ्यात |
दोन मार्गांवर हात ठेऊन चालणे |
|
|
१६० |
एकटा जीव सदाशिव |
एकटा माणूस चिंतामुक्त अन सुखी असतो |
|
|
१६१ |
एकमेका सहाय्य करू अवघे धरू सुपंथ |
एकमेकांच्या सहकार्याने सर्वांचाच
फायदा होतो |
|
|
१६२ |
एका कानाचे दुसऱ्या कानाला कळत नाही |
अत्यंत गुप्तपणे आपले कार्य करणे |
|
|
१६३ |
एका कानावर पगडी घरी बाईल उघडी |
बाहेर श्रीमंतीचा आव आणायचा व घरी
दारिद्र्यात राहणे |
|
|
१६४ |
एका पुताची माय वळचणीखाली जीव जाय |
एक मुलगा पोटी असून सुद्धा तोआईला
सुखाने जगू देत नाही |
|
|
१६५ |
एका माळेचे मनी ओवायला नाही कुणी |
सर्व एकसारखे असताना कोणीच काम करत
नाही |
|
|
१६६ |
एका हाताने टाळी वाजत नाही |
दोष दोन्हीकडे असतो |
|
|
१६७ |
एकादशी अन दुप्पट खाशी |
नियमांच्या विरुद्ध वर्तन करणे
दरिद्री माणसाचा उपयोग होत नाही |
|
|
१६८ |
एकाने गाय मारली तर दुसऱ्याने वासरू
मारू नये |
एकाने वाईट गोष्ट केली तर
आपल्यालाही वाईट गोष्ट करण्याचा हक्क पोहोचत नाही |
|
|
१६९ |
एकूण घेत नाही त्याला सांगू नये
काही |
जो एकात नाही त्याला समजावण्याचा
प्रयत्न करू नये |
|
|
१७० |
ऐतखाऊ लांडग्याचा भाऊ |
कष्ट न करण्याची सवय असलेला मनुष्य
कुठेही आयते खायला मिळाले की डल्ला मारतात |
|
|
१७१ |
ऐकावे जनाचे पण करावे मनाचे |
दुसऱ्यांचे न ऐकता स्वतःचे निर्णय
स्वतःघेणे |
|
|
१७२ |
ओठात एक नि पोटात एक |
प्रकट करताना विचार वेगळे अन मनात
काही वेगळेच विचार. |
|
|
१७३ |
ओढाळ गुराला लोढणे गळ्याला |
गुन्हेगाराला कायद्याचा वाचक
बसावयास हवा |
|
|
१७४ |
ओळखीचा चोर जीवे मारी |
एखाद्याला आपण गुन्हा करताना
पाहिल्यास तर तो आपल्या जिवावर उठतो |
|
|
१७५ |
ओ म्हणता ठो येईना |
कसलेही ज्ञान नसणे, लिहिता वाचता न येणे |
|
|
१७६ |
ओठी तेच पोटी |
बोलावे तसे वागावे, सरळमार्गी माणूस |
|
|
१७७ |
ओल्याबरोबर सुके जळते |
दुष्टांच्या बरोबर राहिल्याने सज्जन
माणसास ही त्रास होतो |
|
|
१७८ |
ओसाड रानात एरंडाचा उदो उदो |
अशिक्षित गावात कमी शिकलेला माणूस
विद्वान ठरतो |
|
|
१७९ |
औषधा वाचून खोकला गेला |
परस्पर संकट टळले |
|
|
१८० |
कडू कारले तुपात तळले,साखरेत घोळले तरी ते कडू ते कडूच |
वाईट व्यक्तीचीवाईट सवय कधीही जात
नाही |
|
|
१८१ |
कधी तुपाशी तर कधी उपाशी |
पैसा असला तर चंगळ करायची नाही तर
उपाशी राहायचे |
|
|
१८२ |
कर नाही त्याला डर कशाला |
दोषी नसताना कसलेही भय राहत नाही |
|
|
१८३ |
करवंदीच्या जाळीला काटे |
चांगल्या वस्तूबरोबर वाईट गोष्टींचा
सामना करावयास लागायचाच |
|
|
१८४ |
करायला गेलो एक आणि झाले भलतेच |
चांगले करायला गेले तरी वाईट घडणे |
|
|
१८५ |
करून करू भागले अन देवपूजेला लागले |
वाईट गोष्टींचा वीट आल्यावर
चांगल्या गोष्टी करण्याचा प्रयत्न करणे |
|
|
१८६ |
कर्कशेला कलह तर पद्मिनीला प्रीती
गोड |
दुष्ट स्त्रीला भांडणे आवडतात तर
गुणवतीला प्रेम आवडते |
|
|
१८७ |
कवड्यांचे दान केले अन गावात नगारे
वाजविले |
दान छोटे करून इतर लोकांना महती
सांगत फिरणे |
|
|
१८८ |
कसायाला गाय धार्जिणी |
गुंडांच्या पुढे लोकं नमतात व पुढे
पुढे करतात |
|
|
१८९ |
कठीण समय येता कोण कामास येतो |
आपल्या अडचणीच्या वेळेस कोणीही
मदतीला येत नाही |
|
|
१९० |
वागावेच लागते कधी गाडीवर नाव तर
कधी नावेवर गाडी |
सर्वाना प्राप्त परिस्थितीनुसार
वागावेच लागते |
|
|
१९१ |
कमरेचे सोडले नि डोईला बांधले |
सर्व लाजलज्जा टाकून देणे |
|
|
१९२ |
करंगळी सुजली तर डोंगरा एवढी होईल
काय |
छोट्या माणसाला थोर माणसाची बरोबरी
करणे अशक्य आहे |
|
|
१९३ |
करायला गेले गणपती अन झाला मारुती |
जे करायचे ते नित समजून करावे नाही
तर भलतेच घडते |
|
|
१९४ |
करीन ती पूर्व |
अंगी असे कर्तुत्व असावे की जे
ठरविले ते घडून आलेच पाहिजे |
|
|
१९५ |
करून गेला गाव अन दुसऱ्याचेच नाव |
एकाने केलेल्या गुन्ह्याचा आरोप
दुसऱ्यावर ठेवणे |
|
|
१९६ |
कळते पण वळत नाही |
चांगल्या गोष्टी कृतीत आणता येणे
कठीण आहे |
|
|
१९७ |
कशात काय अन फाटक्यात पाय |
बडेजाव दाखविला तरी उपयोग नसतो |
|
|
१९८ |
काखेत कळसा गावाला वळसा |
जवळ असलेली वस्तू सर्वदूर शोधणे |
|
|
१९९ |
काठी मारल्याने पाणी दुभंगत नाही |
खरी मैत्री आगंतुक कारणाने तुटत
नाही |
|
|
२०० |
काम न धंदा, हरी गोविंदा |
रिकामटेकडा मनुष्य फक्त बडबड
करण्यात आपला वेळ घालवतो. |
|
|
२०१ |
कामा पुरता मामा |
व्यावहारीक जगात स्वार्थ बाळगणे |
|
|
२०२ |
काळ आला होता पण वेळ आली नव्हती |
प्राणांतिक संकटातून वाचणे |
|
|
२०३ |
कावळा बसायला अन फांदी तुटायला एकाच
घात |
योगायोगाने एखादी गोष्ट घडून
भलत्याच गोष्टीचा संबंध वेगळ्याच गोष्टीला लावणे |
|
|
२०४ |
काविळ झालेल्यास सर्व पिवळे दिसते |
आपणास ज्या गोष्टी जसे विचार करतो
तश्याच वाटतात |
|
|
२०५ |
काकडीची चोरी अन फाशीची शिक्षा |
थोड्याश्या अपराधानंतर फार मोठी
शिक्षा करणे |
|
|
२०६ |
काट्यावाचून गुलाब नाही |
चांगली गोष्ट कठीण परीश्रमाने मिळते |
|
|
२०७ |
कानामागून आली तिखट झाली |
नवीन आलेली व्यक्ती लवकरच यशस्वी
होणे |
|
|
२०८ |
काम नाही घरी अन सांडून भरी |
काम नसताना उगाच काम निर्माण
(वाढवून) तेच काम परत परत करणे |
|
|
२०९ |
काय ग बाई उभी घरात दोघी तिघी |
घरात काम करणारे पुष्कळ वाढले की
प्रत्येकजण कामचुकारपणा करू लागतो |
|
|
२१० |
काळी बेंद्री एकाची अन सुंदर बायको
लोकाची |
सर्वाना आपल्या गोष्टीपेक्षा
इतरांच्या चांगल्या आहेत असे वाटते |
|
|
२११ |
कावळ्याच्या शापाने गाय मरत नाही |
दुर्जन व्यक्तीच्या चिंतनाने
चांगल्या माणसाचे नुकसान होऊ शकत नाही |
|
|
२१२ |
कुंपणानेच शेत खाणे |
रक्षणकर्त्यानेच नुकसान करणेबलाढ्य |
|
|
२१३ |
कुठे राजा भोज कुठे गंगुतेली |
बलाढ्य माणूस आणि दुर्बळ यांची
तुलना होऊ शकत नाही |
|
|
२१४ |
कुत्र्याचे शेपूट नळीत घातले तरी
वाकडे ते वाकडेच |
वाईट व्यक्तीची वाईट सवय कधीही जात
नाही |
|
|
२१५ |
कुहाडीचा दांडा गोतास काळ |
आपल्या जातभाईंचे नुकसान होणे |
|
|
२१६ |
कुंपणानेच शेत खाणे |
रक्षणकर्त्यानेच नुकसान करणे |
|
|
२१७ |
कुठे इंद्राचा ऐरावत कुठे
शामभट्टाची |
तट्टाणी माणसाची तुलना दुर्बळ
माणसाशी होऊ शकत नाही |
|
|
२१८ |
कुठेही जा पळसाला पाने तीनच |
सर्वत्र परिस्थिती सारखीच असते |
|
|
२१९ |
कुन्हाडीचा दांडा गोतास काळ |
दुसऱ्यांना इजा करताना आपल्यालाही
इजा होऊ शकते |
|
|
२२० |
कुसंतानापेक्षा नि:संतान बरे |
वाईट मुले पोटी जन्मल्यापेक्षा मुले
जन्मालान आलेली चांगली |
|
|
२२१ |
केली खाता हरखले व हिशेब देता कचरले |
कोणताही विचार न करता कर्ज करायचे व
देणी वाढली की काळजी करायची |
|
|
२२२ |
केव्हाच नाही त्यापेक्षा उशीर बरा |
अशक्य गोष्ट उशीरा हाती घेतलेली बरी |
|
|
२२३ |
कोल्हयाला द्राक्षे आंबटच |
न मिळणारी गोष्ट आवडत नाही असे
दर्शवीणे |
|
|
२२४ |
कोळसा उगाळावा तेवढा काळा |
वाईट व्यक्तीचा अनुभव कायम वाईट
असतो |
|
|
२२५ |
कोंबड झाकलं तरी तांबड उगवल्या
शिवाय राहत नाहीलपत नाही |
सत्य कधीही लपत नाही. |
|
|
२२६ |
कोल्हा काकडीला राजी |
लहान माणसे थोड्या गोष्टीने संतुष्ट
होतात |
|
|
२२७ |
क्रियेविण वाचाळता व्यर्थ आहे |
अधिक बोलण्या पेक्षा काम करणे
चांगले असते |
|
|
२२८ |
खतास महाखत |
प्रत्येक वाईट माणसास दुसर वरचढ
माणूस मिळतोच |
|
|
२२९ |
खाजवून खरुज काढणे |
एखाद्याची उगाचच कुरापत काढणे |
|
|
२३० |
खाता पिता दोन लाथा |
कायम धाकात ठेवणे |
|
|
२३१ |
खायला काळ भुईला भार |
ज्याचा काही उपयोग नाही असा माणूस
भार बनतो |
|
|
२३२ |
खाली मुंडी पाताळ धुंडी |
स्वभावाने गरीब वाटणारा मनुष्य ही
धोकेदायक असू शकतो |
|
|
२३३ |
खाल्ल्या मिठाला जागणे |
मालकाशी प्रामाणिक राहून संकट काळी
मदत करणे |
|
|
२३४ |
खाई त्याला खव खवे |
ज्यांनी चोरी केली अस्वस्थ होतो |
|
|
२३५ |
खाण्याराला चव नाही रांधणारयाला
फुरसत नाही |
एखाद्या गोष्टीची मागणी वाढली की ती
गोष्ट मुक्तपणे सहन करणे भाग असते |
|
|
२३६ |
खायला काळ भुईला भार |
ज्याचा काही उपयोग नाही असा माणूस
भार बनतो |
|
|
२३७ |
खायला कोंडा निजेला धोंडा |
अत्यंत दारिद्य असणे |
|
|
२३८ |
खाल्ल्या घराचे वासे मोजणे |
ज्या घरात राहतो त्याच घराशी
बेईमानी करणे |
|
|
२३९ |
खिळ्यासाठी नाल गेला अन नालीसाठी
घोडा |
व्यवस्थित नियोजन नसल्याने अपरिमित
नुकसान होणे |
|
|
२४० |
खिशात न्हाई आणा, अन ह्याला बाजीराव म्हणा |
गरीब मनुष्यास कोणीही कीमत देत नाही |
|
|
२४१ |
खिशात नाही दमडी अन बदलली कोंबडी |
ऐपत नसताना बडेजाव दाखविणे |
|
|
२४२ |
गंगा वाहते तोवर हात धुवून घ्यावे |
जोवर लाभ घेता येतो तोपर्यंत
स्वार्थ साधून घेणे. |
|
|
२४३ |
गड आला पण सिंह गेला |
एक महत्त्वाची गोष्ट मिळवताना दुसरी
महत्त्वाची गोष्ट दूर जाणे |
|
|
२४४ |
गरज सरो नि वैद्य मरो |
स्वार्थी मनुष्य दुसऱ्यांचा विचार
करत नाही |
|
|
२४५ |
गरजवंताला अक्कल नाही |
असहाय्य माणूस कोणाकडेही मदतीची
याचना करतो |
|
|
२४६ |
गरिबान खपाव ,धनिकान चाखाव |
जीवावर कोणीही बलाढ्य दुबळ्या
माणसाच्या आपला फायदा करून घेतो |
|
|
२४७ |
ग ची बाधा झाली |
फाजील आत्मविश्वास बळावणे |
|
|
२४८ |
गंगेत घोडं न्हालं |
सर्व इच्छा पूर्णत्वास जाणे |
|
|
२४९ |
गतं न शौच्यम |
एखादी गोष्टीचे महत्व संपल्या नंतर
त्यासाठी उपाय योजना करणे व्यर्थ आहे |
|
|
२५० |
गरज ही शोधाची जननी आहे |
गरजेच्या वेळी मनुष्य हर प्रकारे
हवी ती गोष्ट मिळवणे |
|
|
२५१ |
गरजेल तो बरसेल काय |
मोठमोठ्या गोष्टी करणारे लोक मुळात
काहीही काम करत नाहीत |
|
|
२५२ |
गर्वाचे घर खाली |
गर्व असलेल्या माणसाचा पराजय होतोच |
|
|
२५३ |
गाढवं मेलं ओझ्याने अन शिगरू मेलं
हेलपाट्याने |
समजदार व्यक्ती काम करत आपले जीवन
व्यतित करतात तर मुर्ख मनुष्य काम न समजल्याने
त्रस्त जगतो. |
|
|
२५४ |
गाढवाच्या पाठीवर गोणी |
कष्टकरी माणसाला तया कष्टा संबधित
लाभ मिळत नाही तो लाभ इतरांना मिळतो |
|
|
२५५ |
गाढवापुढे वाचली गीता ,कालचा गोंधळ बरा होता |
चांगले ज्ञानदिल्यावरही व्यक्तीचे
वाईट वागणे |
|
|
२५६ |
गाव करी ते राव न करी |
एकीचे बळ एकट्या माणसाच्या कामाच्या
तुलनेत जास्त असते व त्यामुळे अशक्य गोष्टी
सुद्धा साध्य होतात |
|
|
२५७ |
गावात घर नाही अन रानात शेत नाही |
कफल्लक असणे, दरिद्री असणे |
|
|
२५८ |
गाजराची पुंगी वाजली तर वाजली ,नाहीतर मग मोडून खाल्ली |
एखाद्या गोष्टीचा उपयोग आपल्या
अपेक्षेप्रमाणे झालातर ठीक,नाहीतर त्याचा अन्य तर्हेने उपयोग करणे |
|
|
२५९ |
गाढवाचा गोंधळ लाथांचा सुकाळ |
मुखं मनुष्य आपल्या वागण्याने
सर्वदूर गोंधळ उडवतो |
|
|
२६० |
गाढवाने शेत खाल्ले ,पाप ना पुण्य |
वाईट व्यक्तीला त्याचा वागण्याचे
काहीही वाटत नाही |
|
|
२६१ |
गाढवाला गुळाची चव काय |
मूर्ख माणसाला चांगल्या गोष्टींची
किंमत नसते |
|
|
२६२ |
गाव तिथे उकिरडा |
सर्व दूर सारखीच परिस्थिती असते |
|
|
२६३ |
गावात नाही झाड अन म्हणे एरंडया ला
आले पान |
एखादी गोष्ट उगीचच वाढवून सांगणे |
|
|
२६४ |
गुरवाचे लक्ष निविद्यावर |
मनुष्य प्राण्याला स्वार्थाच्या
गोष्टी लगेच कळतात |
|
|
२६५ |
गोगल गाय पोटात पाय |
वरून दुर्बळ वाटणारे आतून स्वार्थी
असू शकतात |
|
|
२६६ |
गोरा गोमटा कपाळ करंटा |
नुसते दिखाऊपण काही कामाचे नसते |
|
|
२६७ |
घरचा उंबरठा दारालाच माहित |
घरातील गोष्टी घरातल्या लोकांनाच
माहित असते |
|
|
२६८ |
घरात नाही एक तीळ अन मिशाला पिळ |
गरीब असताना श्रीमंतीची एट करणे |
|
|
२६९ |
घरोघरी मातीच्या चुली |
सर्वदूर सारखीच परिस्थिती असते |
|
|
२७० |
घरात घाण दारात घाण कुठे गेली
गोरीपान |
काम न करता फक्त दिखाउपणा प्रदर्शित
करणे |
|
|
२७१ |
घरात नाही कौलान रिकामा डौल |
गरीब असताना श्रीमंतीची एट करणे |
|
|
२७२ |
घार हिंडते आकाशी परी तिचे चित
पिल्लांपाशी |
घर प्रमुखाचे लक्ष आपल्या मुलांकडेच
असते |
|
|
२७३ |
घोंगडे भिजत पडणे |
एखादी गोष्ट खूप दिवसापासून
प्रलंबित असणे |
|
|
२७४ |
घोडामैदानजवळ असणे |
परीक्षा लवकरच होणे |
|
|
२७५ |
घोड्यावर हौदा हत्तीवर खोगीर |
कोणताही विचार न करता विसंगत कृत्य
करणे |
|
|
२७६ |
घोडं झालया मराया अन बसणारा म्हणतो
मी नवां |
दुसऱ्याचे दु:ख न पाहता आपलाच विचार
करणे |
|
|
२७७ |
घोडे खाई भाडे |
एखाद्या गोष्टीवर भरमसाठ खर्च होणे |
|
|
२७८ |
चकाकते ते सोने नसते |
# बडेजाव करणारे
सर्वजण श्रीमंत नसतात |
|
|
२७९ |
चतुर्भुज करणे |
अटक करणे |
|
|
२८० |
चमडी जाईल पण दमडी जाणार नाही |
पैश्यावर खूप प्रेम असणे, कंजूष असणे |
|
|
२८१ |
चढेल तो पडेल |
फार गर्व केला तर पराजय निशित असतो |
|
|
२८२ |
चतुर्भुज होणे |
लग्न करणे |
|
|
२८३ |
चमत्कारास नमस्कार करणे |
विशेषस असाध्य गोष्टीना मानाने |
|
|
२८४ |
चांभाराची नजर जोड्यावर |
आपआपल्या व्यवसाया संबधित
गोष्टींकडे मनुष्य अधिक रस घेऊन अवलोकन करतो |
|
|
२८५ |
चार दिवस सासूचे चार दिवस सुनेचे |
प्रत्येकाचा दिवस असतो |
|
|
२८६ |
चांगल्या कामाचा प्रारंभ स्वतःच्या
घरापासून व्हावा |
चांगली गोष्ट स्वतः पासून सुरवात
करावी |
|
|
२८७ |
चार आण्याचा मसाला बारा आण्याची
कोंबडी |
एखाद्या छोट्या गोष्टीची किंमत कमी
आणि इतर खर्च खूप जास्त असणे |
|
|
२८८ |
चालत्या गाडीला खीळ घालणे |
एखाद्याच्या चांगल्या कामात व्यत्यय
आणणे |
|
|
२८९ |
चिंती परा ते येई घरा |
वाईट चिंतन केले की तशीच घटना
आपल्या आयुष्यात घडते |
|
|
२९० |
चुकणे हा मानवाचा धर्म आहे |
मनुष्य प्राणी हा चुकू शकतो |
|
|
२९१ |
चुकलेला फकीर मशिदीत |
मनुष्य आपल्या मूळ स्थानावर परततो. |
|
|
२९२ |
चोर नाही तर चोराची लंगोटी |
भरपूर अपेक्षा असताना अल्प लाभावर
समाधान मानणे. |
|
|
२९३ |
चोराच्या उलट्या बोंबा |
गुन्हा कबूल न करता समोरच्यास दोषी
ठरवणे. |
|
|
२९४ |
चोराच्या वाटा चोरालाच माहीत |
वाईट कृत्य करणाऱ्या व्यक्तीस
त्याचे मार्ग व स्त्रोत माहिती असतात |
|
|
२९५ |
चोरीचा मामला हळू हळू बोंबला |
वाईट गोष्ट सर्व बाजूंनी झाकण्याचा
प्रयत्न होतो. |
|
|
२९६ |
चोर तो चोर वर शिरजोर |
गुन्हा कबूल न करता समोरच्यास दोषी
ठरवणे. |
|
|
२९७ |
चोर सोडून संन्याश्याला फाशी |
अपराधी व्यक्तीस दंड न करता निष्पाप
व्यक्तीला त्रास देणे |
|
|
२९८ |
चोराच्या मनात चांदणे |
वाईट व्यक्ती कायम कुटिल डाव रचत
असतो |
|
|
२९९ |
चोरावर मोर |
प्रत्येक वाईट माणसाला कधीतरी दुसरा
वरचढ माणूस मिळतोच. |
|
|
३०० |
छडी लागे छमछम विद्या येई घमघम |
कठीण परिश्रम व दंड यामुळेच यश
मिळते |
|
|
३०१ |
छत्तीसाचा आकडा |
विरुद्ध मत असणे |
|
|
३०२ |
जपून पाऊल टाकणे |
काळजीपूर्वक काम करणे |
|
|
३०३ |
जळी स्थळी काष्ठी पाषाणी असणे |
सर्वदूर असणे |
|
|
३०४ |
जशी कामना तशी भावना |
आपण जसे चिंतन करतो त्याप्रमाणे
आपले विचार बनतात. |
|
|
३०५ |
जसा गुरु तसा चेला |
एका प्रमुख व्यक्तीच्या
मार्गदर्शनाखाल त्या व्यक्तीच्या स्वभावचेच लोक निर्माण होतात. |
|
|
३०६ |
जखमेवर मीठ चोळणे |
आधीच त्रस्त असताना परत त्याच
गोष्टीविषयी त्रास देणे |
|
|
३०७ |
जळत घर भाड्याने कोण घेणार? |
संकटग्रस्त गोष्ट कोणालाच आवडत नाही |
|
|
३०८ |
जशास तशे |
समोरच्या व्यक्ती व्यवहारानुसार
आपला व्यवहार ठरवावा |
|
|
३०९ |
जशी नियत तशी बरकत |
आपले यश आपल्या चांगल्या विचारांवर
अवलंबुन असते. |
|
|
३१० |
जसा भाव तसा देव |
आपली जशी श्रध्दा असेल त्याप्रमाणे
आपल्याला फळ मिळेल. |
|
|
३११ |
जाळा वाचून नाही कढ,माये वाचून नाही रड |
|
|
|
३१२ |
जावे त्याचा वंशा,तेव्हा कळे |
एखाद्या व्यक्तीचे दु:ख त्याच्या
जवळ गेल्यावर कळते |
|
|
३१३ |
जात्यातले रडतात आणि सुपातले हसतात |
दुसऱ्यांना हसताना विचार करणे
क्रमप्राप्त आहे, काही दिवसांनी तशी वेळ आपल्यावरही येऊ
शकते |
|
|
३१४ |
जावयाचं पोर हरामखोर |
माणसाची प्रवृत्ती आपल्या स्वार्थ
साधण्यासाठीच असते. |
|
|
३१५ |
जिकडे पोळी तिकडे गोंडा घोळी |
एखद्या ठिकाणी लाभ असता तिकडे विशेष
लक्ष्य देणे. |
|
|
३१६ |
जित्याची खोड मेल्याशिवाय जात नाही |
वाईट व्यक्तीची वाईट सवय कधीही जात
नाही |
|
|
३१७ |
जिकडे सुई तिकडे दोरा |
घनिष्ट संबंध असणारे एकमेकांजावळ
कायम असतात. |
|
|
३१८ |
जिथे कमी तेथे आम्ही |
पडेल ते काम करून समोरच्यास हातभार
लावणे |
|
|
३१९ |
जेथे पिकतं तिथे विकतं नाही |
एखादी गोष्ट विपुल प्रमाणात
असलेल्या भागात त्या गोष्टीचे महत्त्व राहत नाही. |
|
|
३२० |
जो दुसऱ्यावर विसंबला त्याचा
कार्यभाग बुडाला |
आपले काम दुसऱ्यावर ढकललेतर अपयश
येते, कष्ट करणाऱ्या
व्यक्तीस काही कमी पडत नाही |
|
|
३२१ |
जो खाईल आंबा तो सोशेल ओळंबा |
एखाद्या गोष्टीचा लाभ घेताना त्याचे
दोष स्वीकारावे |
|
|
३२२ |
जो श्रमी त्याला काय कमी |
कष्ट करणाऱ्या व्यक्तीस काही कमी
पडत नाही. |
|
|
३२३ |
ज्याचंजळतं त्यालाच कळतं |
आपले दु:ख आपल्यालाच सोसावे लागते |
|
|
३२४ |
ज्याचा हात मोडेल त्याच्या गळ्यात
पडेल |
वाईट कृत्य स्वतःलाच भोगावे लागते |
|
|
३२५ |
ज्याला नाही अक्कल त्याची घरोघरी
नक्कल |
मुर्ख माणसाची सर्वत्र उपेक्षा व
टिंगल होते. |
|
|
३२६ |
ज्या गावच्या बोरी त्याच गावच्या
बाभळी |
एका प्रदेशात सर्व गुणधर्माचे लोकं
राहतात |
|
|
३२७ |
ज्याचा कंटाळा त्याचा वानोळा |
जी कंटाळवाणी बाब असते तीच
स्वीकारावी लागणे |
|
|
३२८ |
ज्याची मिळते पोळी त्याची वाजवावी
टाळी |
आपल्या मालकाचे गुणगान करणे |
|
|
३२९ |
ज्याचंजळतं त्यालाच कळतं |
आपले दु:ख आपल्यालाच सोसावे लागते |
|
|
३३० |
ज्याचा हात मोडेल त्याच्या गळ्यात
पडेल |
वाईट कृत्य स्वतःलाच भोगावे लागते |
|
|
३३१ |
ज्याला नाही अक्कल त्याची घरोघरी
नक्कल |
मुर्ख माणसाची सर्वत्र उपेक्षा व
टिंगल होते. |
|
|
३३२ |
झाडाजवळ छाया अन बुवाजवळ बाया |
थोडे आमिष दाखविले तरी मनुष्याची
धाव तिकडेच असते |
|
|
३३३ |
ज्या गावच्या बोरी त्याच गावच्या
बाभळी |
एका प्रदेशात सर्व गुणधर्माचे लोकं
राहतात |
|
|
३३४ |
ज्याचा कंटाळा त्याचा वानोळा |
जी कंटाळवाणी बाब असते तीच
स्वीकारावी लागणे |
|
|
३३५ |
ज्याची मिळते पोळी त्याची वाजवावी
टाळी |
आपल्या मालकाचे गुणगान करणे |
|
|
३३६ |
झाकली मूठ सव्वा लाखाची |
दुर्गुण असले तरी प्रकट करू नयेत |
|
|
३३७ |
झालं गेलं अन गंगेला मिळालं |
भूतकाळाच्या गोष्टी दुर्लक्ष करून
पुढे मार्गक्रमण करणे |
|
|
३३८ |
झाकली मूठ सव्वा लाखाची |
दुर्गुण असले तरी प्रकट करू नयेत |
|
|
३३९ |
झाडाजवळ छाया अन बुवाजवळ बाया |
थोडे आमिष दाखविले तरी मनुष्याची
धाव तिकडेच असते |
|
|
३४० |
टाकीचे घाव सोसल्याशिवाय देवपण येत
नही |
कष्टाशिवाय यश मिळत नाही |
|
|
३४१ |
ठकास महाठक |
प्रत्येक वाईट माणसाला त्यापेक्षा वरचढ
माणूस मिळतोच |
|
|
३४२ |
ठेवीले अनंते तैसेची राहावे |
जी परिस्थिती आहे त्यात समाधान
मानावे |
|
|
३४३ |
डल्ला मारणे |
दुसऱ्याची वस्तू चोरणे |
|
|
३४४ |
डोळ्यात अंजन घालणे |
एखाद्यास दिवसाढवळ्या विश्वासघात
करुन फसविणे |
|
|
३४५ |
डोंगर पोखरून उंदीर कढणे |
जास्त श्रम करून कमी फायदा होणे |
|
|
३४६ |
ढवळ्या जातो आणि पवळ्या येतो पण
सावळा गोंधळ तसाच राहतो |
कारभारी व्यक्ती बदलली तरी फारसे
बदल होत नाही अन तोच तो गोंधळ उडतो. |
|
|
३४७ |
ढवळ्याशेजारी बांधला पावळया, वाण नाही पण गुण लागला |
दोन व्यक्तींना सोबत राहताना
एकमेकांच्या सवयी लागणे. |
|
|
३४८ |
तळ हाताने सूर्य झाकला जात नाही |
छोट्या गोष्टीनी फार मोठे व थोर
बाबी दडवता येत नाही |
|
|
३४९ |
तवा तापला तोवर भाकरी भाजून घ्यावी |
जोवर लाभ घेता येतो तोपर्यंत
स्वार्थ साधून घेणे. |
|
|
३५० |
तरण्याला लागली कळ अन म्हातारयाला
आल बळ |
तरुण माणूस आळशी असतो |
|
|
३५१ |
तळ्यात मळ्यात करणे |
मनाची अवस्था अस्थिर असणे |
|
|
३५२ |
तहान लागल्यावर विहीर खोदणे |
गरज लागल्यानंतरच एखाद्या
गोष्टीसाठी तयारी करणे |
|
|
३५३ |
ताकापुरते रामायण |
एखादी गोष्ट मिळेपर्यंत संवाद
साधणे. स्वार्थ साधल्यावर तडक निघून जाणे. |
|
|
३५४ |
ताकास तूर न लागू देणे |
मनातील गोष्ट न सांगणे |
|
|
३५५ |
ताक कुंकून पिणे |
प्रत्येक छोटी गोष्ट सुद्धा
काळजीपूर्वक करणे |
|
|
३५६ |
ताकास जाऊन लोटा लपवणे |
एखादी गोष्ट इच्छा नसतांना लपविणे |
|
|
३५७ |
तुझी दाढी जळू दे पण माझी वीडी पेटू
दे |
दुसऱ्याचे नुकसान झाले तरी चालेल पण
स्वतःचा स्वार्थ साधणे |
|
|
३५८ |
तीन तिघाडा काम बिघाडा |
एखादे काम भरपूर जणांनी लक्ष
केंद्रित करून केले तर अपयश येऊ शकते |
|
|
३५९ |
तू राणी मी राणी पाणी कोण आणी |
दोन सुकुमार ,नाजूक व्यक्ती कधीही काम करत नाही, असे व्यक्ती जवळ आल्यास एकमेकांचा
एकमेकांना फटका बसतो |
|
|
३६० |
तेरड्याचा रंग तीन दिवस |
एखादे कार्य थोडे दिवस जोरात चालून
एकदम बंद पडणे |
|
|
३६१ |
तेल गेले तूप गेले हाती आले धुपाटणे |
एकाच दोन वेगवेगळ्या गोष्टींवर लक्ष
केंद्रित केल्यावर दोन्ही गोष्टींचा लाभ न होणे |
|
|
३६२ |
तोबरयाला पुढे ,लगमला मागे |
फायद्याचा वेळी पुढे पुढे ,कामाच्या वेळी मात्र मागेमागे |
|
|
३६३ |
तोंडाला पाने पुसणे |
हमी देऊन समोरच्या व्यक्तीचे काम न
करणे |
|
|
३६४ |
थेंबे थेंबे तळे साचे |
काटकसर केल्यास बरीच शिल्लक मागे
पडते |
|
|
३६५ |
दगडा पेक्षा वीट मऊ |
छोट्या गोष्टीत समाधानी राहणे |
|
|
३६६ |
दमडीची नाही मिळकत आणि घडीची नाही
फुरसत |
रिकामटेकडा मनुष्य आपण खूप व्यस्त
आहे असे दर्शवितो. |
|
|
३६७ |
दहा मरावे पर दहांचा पोशिंदा मरु
नये |
महत्त्वाची व्यक्ती गेली तर फार
मोठे नुकसान होते. |
|
|
३६८ |
दक्षिणा तशी प्रदक्षिणा |
व्यवसायात जसा लाभ असेल तसे महत्त्व
आपल्या ग्राहकास देणे |
|
|
३६९ |
दगडावरची रेघ |
कायमची गोष्ट |
|
|
३७० |
दहा गेले पाच उरले |
आत्मविश्वास कमी होणे. |
|
|
३७१ |
दही वाळत घालून भांडण |
एखाद्या नुकसानाची तमा न बाळगता वैर
करणे सुरूच ठेवणे |
|
|
३७२ |
दांत कोरून पोट भरतो |
उपजिवीकेसाठी फार थोडे श्रम घेऊन
जीवन व्यतीत करणे. |
|
|
३७३ |
दांत आहे तर चणे नाहीत, चणे आहेत तर दांत नाहीत |
सर्व गोष्टी उपलब्ध असल्यातरी
त्याचा उपभोग घेता न येणे. |
|
|
३७४ |
दाखवायचे दात वेगळे अन खायचे दात
वेगळे |
प्रकट करताना विचार वेगळे अन मनात
काही वेगळेच विचार |
|
|
३७५ |
दात कोरुन पोट भारता येत नाही |
इकडून तिकडून आणलेल्या अल्प
मिळकतीवर जीवन व्यतीत करता येत नाही |
|
|
३७६ |
दाम करी काम |
पैशाला किंमत असते |
|
|
३७७ |
दाणा दाणा टिपतो पक्षी पोट भरतो |
कष्टकरी आपले पोट अत्यंत जिकिरीने
भरतो |
|
|
३७८ |
दानवाच्या घरी रावण देव |
जसा आपला स्वभाव तसे आपले
श्रद्धास्थान बदलते. |
|
|
३७९ |
दारात नाही आड म्हणे लावतो झाड |
साधने नसताना एखादी गोष्ट हौस
म्हणून करणे |
|
|
३८० |
दिवस गेला रेटारेटी, चांदण्यात कापूस वेचीत |
दिवसभर आपला वेळ वाया घालवून
शेवटच्या क्षणास धावा-धाव करणे. |
|
|
३८१ |
दिवस मेला इथं तिथं अन रात्र झाली
निजु कुठं |
दिवसभर आपला वेळ वाया घालवून
शेवटच्या क्षणास धावा-धाव करणे. |
|
|
३८२ |
दिवाळी दसरा हात पाय पसरा |
सण बघून भरमसाठ खर्च करणे |
|
|
३८३ |
दिसतं तस नसतं म्हणून जग फसतं |
दिखाऊ गोष्टी या कायम तकलादू असतात, मुळात वेगळेच काही असते. |
|
|
३८४ |
दिल्या भाकरीचा सांगितल्या चाकरीचा |
एखादा मनुष्य एकाच ठिकाणी फार
काहीअपेक्षा न ठेवता काम करतो. |
|
|
३८५ |
दिवस बुडाला मजूर उडाला |
टाम-टून काम करून निघून जाणे. |
|
|
३८६ |
दिवसा चुल रात्री मूल |
दिवस-रात्र कामाचा त्रास असणे. |
|
|
३८७ |
दिव्या खाली अंधार |
मोठ्या व्यक्तीचे सुद्धा गुण दोष
असतात |
|
|
३८८ |
दुःख रेड्याला न डाग पखालीला |
एखाद्याच्या त्रासामुळे दुसरा
चांगला व्यक्ती त्रासात पडणे. |
|
|
३८९ |
दुध पोळलं की ताक कुंकून प्यावे |
एखादा अवघड प्रसंग सोसल्यावर पुढे
काळजी घेणे |
|
|
३९० |
दुधात साखर पडणे |
एकाचवेळी अनेक गोष्टीचा लाभ होणे |
|
|
३९१ |
दुर्दैवाचे दशावतार होणे |
अनेक बाजूने संकट येणे |
|
|
३९२ |
दुष्टी आड सृष्टी |
आपल्या पाहण्यापलीकडे पण जग आहे |
|
|
३९३ |
दुखणे हत्तीच्या पायाने येते आणि मुंगीच्या
पायाने जाते |
दु:ख लवकर संपत नाही. |
|
|
३९४ |
दुधाची तहान ताकावर |
छोट्या गोष्टीत समाधानी राहणे |
|
|
३९५ |
दुधापेक्षा सायीवर प्रेम जास्त |
मुलांपेक्षा नातवंडांवर अधिक प्रेम
असणे. |
|
|
३९६ |
दुष्काळात तेरावा महिना |
संकटात अधिक भर पडणे |
|
|
३९७ |
दुसऱ्याच्या डोळ्यातील कुसळ दिसते
पण स्वतःच्या डोळ्यातील मुसळ दिसत नाही |
स्वतःच्या चुकांकडे दुर्लक्ष करून
दुसऱ्याच्या चुकांविषयी बोलणे |
|
|
३९८ |
देणं न घेणं आणि कंदिल लावून येणं |
उगाचच एखाधाची कुरापत काढणे. |
|
|
३९९ |
देश तसा वेश |
प्रदेशाप्रमाणे आपले संस्कार, पोशाख बदलतो. |
|
|
४०० |
दे माय धरणी ठाय करणे |
खूप त्रस्त होणे |
|
|
४०१ |
देवाची करणी अन नारळात पाणी |
नैसर्गिक गोष्टींना तोड नसते |
|
|
४०२ |
देह देवळात चित्त पायतणात |
एका ठिकाणी मन एकाग्र न करता ,दुसऱ्याच ठिकाणीचित्त घोटाळणे. |
|
|
४०३ |
दैव देते कर्म नेते |
कर्म वाईट केले तर चांगल्या
गोष्टीचा त्याग करावा लागतो |
|
|
४०४ |
दोन डोळे शेजारी, भेट नाही संसारी |
जिवलग दोन व्यक्तींची भेट जवळ
असूनही न होणे. |
|
|
४०५ |
दोघींचा दादला उपाशी |
एकाच वेळी दोन गोष्टींवर लक्ष
केंद्रित केल्यामुळे कोणताही अपेक्षित लाभ न होणे. |
|
|
४०६ |
दोन्ही घरचा पाहुणा उपाशी |
दोन वेगवेगळ्या समूहाना पाठिंबा
देणाऱ्या व्यक्तीला तोटा होतो |
|
|
४०७ |
द्या दान सुटे गिरान (ग्रहण) |
एखादा आशावाद दाखवून द्रव्याची
अपेक्षा करणे |
|
|
४०८ |
ध चा मा करणे |
सांगताना एखाद्या मूळ गोष्टीत बदल
करून आपला स्वार्थ साधणे |
|
|
४०९ |
नकटीच्या लग्नाला सतराशे विघ्न |
असलेल्या व अडखळत मुळात कमी
तयारीअसलेल्या कार्यात अनेक बाधा येणे |
|
|
४१० |
नर का नारायण बनणे |
कर्म करून उच्च होणे |
|
|
४११ |
नवी विटी नवे राज्य |
नवीन राज्यकर्ते नवीन कायदे आणतात |
|
|
४१२ |
नव्याचे नऊ दिवस |
नवेपणा असतानाचे कौतुक नंतर टिकत
नाही |
|
|
४१३ |
नकर्त्यांचा वार शनिवार |
काम न करणारा व्यक्ती फक्त बहाणे
सांगतो |
|
|
४१४ |
नकटे व्हावे पण धाकटे होऊ नये |
छोट्या व्यक्तींना नेहमी कामे
सांगितली जातात |
|
|
४१५ |
नरोवा कुंजरोवा |
कोणत्याही गोष्टीबाबत भाष्य न करणे, केल्यास संभ्रम निर्माण करणे |
|
|
४१६ |
नव्याची नवलाई |
एखाद्या नवी गोष्टीचा उदोउदो करणे |
|
|
४१७ |
नसून खोळंबा असून दाटी |
एखाद्या प्रमुख व्यक्तीचा कोणताही
उपयोग न होणे |
|
|
४१८ |
नाकाचा बाल |
अत्यंत प्रिय व्यक्ती |
|
|
४१९ |
नाकापेक्षा मोती जड होणे |
डोईजड होणे |
|
|
४२० |
नाव मोठे लक्षण खोटे |
#श्रीमंत असून कंजूष
असणे, #श्रीमंत असण्याचा आव आणणे |
|
|
४२१ |
नाव सोनुबाई अन हाती कथलाचा वाळा |
नावाप्रमाणे महती नसणे |
|
|
४२२ |
नाक दाबले की तोंड उघडते |
मनस्थितीत हवे ते काम एखाद्यास
कोंडीत पकडून ऋण घेता येते |
|
|
४२३ |
नाकापेक्षा मोती जड |
महत्वाची गोष्ट सोडून इतर गोष्टीला
महत्त्व येणे |
|
|
४२४ |
नाचता येईना आंगण वाकडे |
स्वतः येत नसलेली गोष्ट न करता इतर
गोष्टीस बोल लावणे |
|
|
४२५ |
नाव सगुणी अन करणी अवगुणी |
नावाप्रमाणे न राहता वाईट कृत्य
करणे |
|
|
४२६ |
नावडतीचे मीठ अळणी |
नावडत्या व्यक्तीने केलेली कोणतीही
गोष्ट आवडत नाही |
|
|
४२७ |
निंदकाचे घर असावे शेजारी |
आपल्या टीकाकारांमुळे आपला विकास
होतो |
|
|
४२८ |
निर्लज्जम सदा सुखी |
वाईट व्यक्तीला त्याचा वागण्याचे
काहीही वाटत नाही |
|
|
४२९ |
पहिले पाढे पंचावन्न |
भरपूर समजावुन सुद्धा वाईट वागण्यात
बदल न होणे |
|
|
४३० |
पाण्यात राहून माशाशी वैर |
बलवानाशी शत्रुत्व काय कामाचे? |
|
|
४३१ |
पालथ्या घड्यावर पाणी |
नि:र्बुध्ध व्यक्तीचे वर्तन सुधारत
नाही |
|
|
४३२ |
पाण्यात राहून माशाशी वेर |
बलवानाशी शत्रुत्व काय कामाचे ? |
|
|
४३३ |
पायीची वहाण पायी बरी |
योग्यतेप्रमाणे वागवावे |
|
|
४३४ |
पुढच्यास ठेच मागचा शहाणा |
एकाच मार्गावरील पुढील व्यक्तीस
वाईट अनुभव आल्यास तो मागच्या माणसा साठी मार्गदर्शक ठरतो |
|
|
४३५ |
पी हळद आणि हो गोरी |
उतावीळ होणे |
|
|
४३६ |
पेराल तसे उगवेल |
कर्मानुसार तसे फळ मिळते |
|
|
४३७ |
प्रत्येक कुत्र्याचा दिवस असतो |
प्रत्येकाचा दिवस येतो |
|
|
४३८ |
प्रयत्नांती परमेश्वर |
खूप कष्ट करण्याची तयारी असली की
कोणतीही गोष्ट साध्य होऊ शकते |
|
|
४३९ |
फट म्हणताच ब्रम्ह |
हत्या छोट्या गोष्टीवरुन दोषी ठरवणे |
|
|
४४० |
बळी तो कान पिळी |
बलवान माणूस दुर्बळ माणसांना पिडतो |
|
|
४४१ |
बडा घर पोकळ वासा |
श्रीमंत असून कंजूष असणे, श्रीमंत असण्याचा आव आणणे |
|
|
४४२ |
बाप दाखव नाही तर श्राद्ध कर |
कोणत्याही गोष्टीचा पुरावा मागणे |
|
|
४४३ |
बाळाचे बाप ब्रह्मचारी |
निष्पाप वाटणाऱ्या व्यक्ती दोषी
असणे |
|
|
४४४ |
बाबाही गेला दशम्या गेल्या |
एकाच दोन वेगवेगळ्या गोष्टींवर लक्ष
केंद्रित केल्यावर दोन्ही गोष्टींचा लाभ न होणे |
|
|
४४५ |
बुडत्याला काठीचा आधार |
संकटग्रस्त मनुष्यास छोटी मदत
सुद्धा मोठी वाटते |
|
|
४४६ |
बैल गेला नि झोपा केला |
एखाद्या गोष्टीची निकड संपल्यावर
त्या गोष्टीसाठी काम करणे |
|
|
४४७ |
बैल गेला अन झोपा केला |
एखादी गोष्टीचे महत्व संपल्या नंतर
त्यासाठी उपाय योजना करणे व्यर्थ आहे |
|
|
४४८ |
बोलण्यापेक्ष मौन श्रेष्ठ |
अधिक बोलण्या पेक्षा काम करणे
चांगले असते |
|
|
४४९ |
बोलाचीच कढी बोलाचाच भात |
खोटी आश्वासने देणे |
|
|
४५० |
बोलाचीच कढी बोलाचाच भात |
कार्य न करता वायफळ बडबड करणे |
|
|
४५१ |
भरंवशाच्या म्हशीला टोणगा |
पूर्ण निराशा करणे |
|
|
४५२ |
भित्यापाठी ब्रह्म राक्षस |
भित्रा माणूस सदैव कोणत्याही छोट्या
बाबीना घाबरतो. |
|
|
४५३ |
ल्या गाड्यास सूप जड नाही |
समर्थ व्यक्तीला छोटे काम विशेष
वाटत नाही |
|
|
४५४ |
मऊ सापडले म्हणून कोपराने खणू नये |
एखाद्याच्या चांगुलपणाचा फार फायदा
घेऊ नये |
|
|
४५५ |
मनी वसे ते स्वप्नी |
आपण ज्या गोष्टीचा सदैव विचार करतो
तीच गोष्ट आपल्याला आसपास दिसते (आभास होतो) |
|
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४५६ |
मुलाचे पाय पाळण्यात दिसतात |
व्यक्तीचे गुणदोष सुरवातीच्या काळात
लगेच कळतात |
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४५७ |
मूर्ती लहान पण कीर्ती महान |
छोटा मनुष्य तरी कार्यक्षमता खूप
असणे |
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४५८ |
मेल्याशिवाय स्वर्ग दिसत नाही |
काही गोष्टी स्वतःअनुभावल्याशिवाय
कळत नाही |
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४५९ |
यज्ञास बळी बोकडाचा |
दुर्बळ व्यक्तीला कठीण काम करण्यास
सांगणे |
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४६० |
रात्र थोडी सोंगे फार |
काम भरपूर, वेळ कमी |
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४६१ |
राजा उदार झाला हाती भोपळा दिला |
आशा असताना एखाद्या मोठ्या
व्यक्तीने अपेक्षेनुसार काम न करणे |
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४६२ |
राम कृष्ण आले गेले तरीही जग का
चालायचे थांबले |
व्यावहारिक बाबी कुणासाठीही थांबत नाही |
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४६३ |
लंकेची पार्वती असणे |
अत्यंत गरीब असणे |
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४६४ |
लहान तोंडी मोठा घास |
छोट्या व्यक्तीने आवाक्या बाहेरच्या
गोष्टी करणे |
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४६५ |
लंकेत सोन्याच्या विटा |
दुसऱ्याची श्रीमंती आपल्या काही
कामाची नसते |
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४६६ |
लहानपण देगादेवा मुंगी साखरेचा रवा |
मोठेपणा न मिरवता छोटे होऊन आपले
काम परिपूर्ण करणे सुखी आहे |
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४६७ |
लेकी बोले सुने लागे |
एकाला बोलल्यावर दुसऱ्याने त्यातील
संदेश ओळखणे |
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४६८ |
वराती मागून घोडे |
एखादी गोष्टीचे महत्व संपल्या नंतर
त्यासाठी उपाय योजना करणे व्यर्थ आहे |
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४६९ |
वाचाल तर वाचाल |
शिक्षण घेतले की तरच प्रगती होऊ
शकते |
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४७० |
वारा पाहून पाठ फिरवावी |
वातावरण पाहून वागावे |
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४७१ |
वाळूचे कणही रगडीता तेलही गळे |
कठोर परिश्रमामुळे कोणतीही गोष्ट
साध्या होऊ शकते |
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४७२ |
वाड्याचे तेल वाग्यांवर |
एका गोष्टीचा राग दुसऱ्यावर काढणे |
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४७३ |
वाऱ्यावरती वरात काढणे |
स्वतः नियोजन न करता दुसऱ्यावर
विसंबून महत्त्वाचे कार्य करणे |
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४७४ |
वासरात लंगडी गाय शहाणी |
मूर्ख लोकांमध्ये कमी बुध्धिवान
मनुष्यसुद्धा प्रसिद्ध असतो |
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४७५ |
विंचवाचे बिहाड पाठीवर |
फिरत्या माणसाचा ठाव ठिकाणा लागणे
मुश्कील असते किंवा अस्थिर गोष्टी या कायम मूळ विषयापासून भटकतात |
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४७६ |
शितावरून भाताची परीक्षा |
फार थोड्या नमुन्यावरुन मोठ्या
वस्तूंची चाचणी करणे |
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४७७ |
शुद्ध नाही मन तया काय करी साबण |
मनात कुविचार असता चांगले विचार
ऐकणे व्यर्थ आहे |
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४७८ |
शुध्द बीजापोटी फळे रसाळ गोमटी |
संस्कारी कुटुंबात चांगल्या व्यक्ती
असतात |
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४७९ |
शेखी मीरविणे |
उगाचच मोठ्या गोष्टी करणे |
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४८० |
शेरास सव्वाशेर |
प्रत्येक वाईट माणसाला त्यापेक्षा
वरचढ माणूस मिळतोच |
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४८१ |
शेंडी तुटो की पारंबी तुटो |
एखाद्या गोष्टीचे परिणाम काय राहणार
याची चिंता न करणे |
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४८२ |
शेरास सव्वाशेर |
प्रतिपक्षापेक्षा श्रेष्ठ |
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४८३ |
शेळी जाते जीवानिशी खाणारा म्हणतो
वातड |
आपल्या स्वार्थ साधण्यासाठी
दुसऱ्याच्या जीवाचा विचार न करणे |
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४८४ |
श्वानाचीया भुंकण्याला हती देईना
किंमत |
बलवान व्यक्ती दुर्बल माणसाला किंमत
देत नाही |
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४८५ |
संगत गुण से सोबत गुण |
दोन व्यक्तींना सोबत राहताना
एकमेकांच्या सवयी लागणे |
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४८६ |
समुद्रामाजी फुटकें तारू |
चांगल्या गोष्टींबरोबर वाईट गोष्टी
पण असतात |
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४८७ |
सरड्याची धाव कुंपणा पर्यंतच |
दुर्बळ माणूस एका मार्यादेच्याआतच
काम करतो |
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४८८ |
सरकारी काम अन बारा महिने थांब |
काही कामं नेहमी विलंबाने होत असतात, त्या साठी धीर देणे योग्य |
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४८९ |
संन्याश्याच्या लग्नाला शेंडीपासून
प्रारंभ |
मुळात कमी तयारी असलेल्या व अडखळत
असलेल्या कार्यात अनेक बाधा येणे |
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४९० |
साखरेचे खाणार त्याला देव देणार |
सगळ्यांशी आपुलकीने वर्तन केल्यास
असाध्य बाब साध्य होऊ शकते |
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४९१ |
सुंठेवाचून खोकला गेला |
परस्पर संकट टळले |
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४९२ |
सुंभ जळतो पण पिळ जळत नाही |
भरपूर शिक्षा होऊन सुध्दा वाईट
प्रवृत्ती नष्ट करता येत नाही |
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४९३ |
हत्ती गेला शेपूट राहिलं |
अवघड काम संपल्यानंतर छोटे (सोपे)
राहणे |
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४९४ |
हपापाचा माल गपापा |
अती हव्यासाने असलेले द्रव्य ही
नष्ट होते |
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४९५ |
हत्ती होऊन ओंडके, मुंगी होऊन साखर खाल्लेली बरी |
मोठेपणा न मिरवता छोटे होऊन आपले
काम परिपूर्ण करणे सुखी आहे |
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४९६ |
हलवायाच्या घरावर तुळशीपत्र |
स्वतःच्या व्यवसायात नामांकित
असूनही आपल्या घरासाठी आपल्या व्यवसायासंबधित सुविधा देता न येणे |
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४९७ |
हात दाखवून अवलक्षण |
उगाचच विविध गोष्टी मागे धावून हसे
करुन घेणे |
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४९८ |
हातावर तुरी देणे |
एखाद्याच्या कचाट्यातून सुटणे |
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४९९ |
हा सूर्य आणि हा जयद्रथ |
पुराव्यासहित सिद्ध करणे |
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५०० |
हातच्या कंकणाला आरसा कशाला |
उघड सत्य हे केव्हाही खरे करता येऊ
शकते |
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५०१ चोराच्या मनात चांदणे - वाईट कृत्य करणाऱ्याला आपले कृत्य उघडकीला येईल की काय, अशी सारखी भीती वाटत असते
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